• Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 6
    Apr 21 2025
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 6संस्कृत श्लोक: "पश्यादित्यान्वसून् रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा |बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ||" श्रीभगवान बोले:"हे भारत (अर्जुन)! देखो, मेरे भीतर बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र, दो अश्विनी कुमार और उन्चास मरुतगण स्थित हैं। इसके अतिरिक्त, और भी बहुत-से अद्भुत दृश्य देखो, जो तुमने पहले कभी नहीं देखे हैं।" 👉 "पश्यादित्यान्वसून् रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा" – भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के भीतर संपूर्ण ब्रह्मांड की दिव्य शक्तियों को दिखाने का संकेत देते हैं। इसमें: आदित्य (सूर्यदेव के बारह स्वरूप)वसु (आठ वसु देवता, जो तत्वों के अधिष्ठाता हैं)रुद्र (ग्यारह रुद्र, जो भगवान शिव के रूप माने जाते हैं)अश्विनी कुमार (स्वर्गीय चिकित्सक)मरुतगण (उनचास पवन देवता) 👉 "बहून्यदृष्टपूर्वाणि" – अर्जुन को वे अद्भुत दृश्य देखने को मिलेंगे, जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखे थे।👉 "पश्याश्चर्याणि भारत" – भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उन अलौकिक और आश्चर्यजनक दृश्य दिखाने वाले हैं, जो उनकी दिव्यता को प्रमाणित करेंगे। ✅ भगवान के विराट रूप में सभी दिव्य शक्तियाँ समाहित हैं।✅ यह श्लोक हमें सिखाता है कि ईश्वर की महिमा केवल मानव कल्पना तक सीमित नहीं, बल्कि वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड के कर्ता, धर्ता और संहारक हैं।✅ भगवान के स्वरूप को देखने के लिए केवल भक्ति और उनकी कृपा आवश्यक है। 💡 यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि भगवान की लीला असीमित और अनंत है, और वे समस्त ब्रह्मांड को अपने भीतर समाहित किए हुए हैं। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 6🕉 श्रीभगवान बोले:"हे अर्जुन! देखो, मेरे भीतर सभी आदित्य, वसु, रुद्र, अश्विनी कुमार और मरुतगण स्थित हैं। इसके अलावा, वे अद्भुत दृश्य देखो, जो तुमने पहले कभी नहीं देखे हैं।" 🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान के विराट स्वरूप में सम्पूर्ण सृष्टि समाहित है। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #Vedanta #Spirituality #गीता_उपदेश #महाभारत #GeetaShlok #KrishnaBhakti #Bhakti #Yoga #ज्ञानयोग #Moksha
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 5
    Apr 20 2025

    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 5संस्कृत श्लोक:

    "श्रीभगवानुवाच |
    पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश: |
    नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ||"

    श्रीभगवान बोले:
    "हे पार्थ! मेरे सैकड़ों और हजारों दिव्य स्वरूपों को देखो, जो विभिन्न प्रकार के हैं, अनेक रंगों और आकारों से युक्त हैं।"

    👉 "पश्य मे पार्थ रूपाणि" – श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने असंख्य दिव्य रूपों के दर्शन कराने जा रहे हैं।
    👉 "शतशोऽथ सहस्रशः" – भगवान के अनगिनत स्वरूप हैं, जिनकी गिनती सैकड़ों और हजारों में भी नहीं हो सकती।
    👉 "नानाविधानि दिव्यानि" – ये सभी स्वरूप दिव्य (अलौकिक) हैं, जिनका सामान्य मानव अनुभव नहीं कर सकता।
    👉 "नानावर्णाकृतीनि च" – भगवान के ये रूप विभिन्न रंगों, आकारों और स्वरूपों में हैं, जो उनकी अनंतता और व्यापकता को दर्शाते हैं।

    भगवान के स्वरूप अनंत हैं, वे केवल एक रूप तक सीमित नहीं हैं।
    संसार में सभी विविधताएँ भगवान के विभिन्न स्वरूपों का ही प्रतिबिंब हैं।
    यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि ईश्वर की महिमा असीम है, और वे अनेक रूपों में उपस्थित रहते हैं।

    💡 भगवान के विराट रूप को देखने के लिए हमें आध्यात्मिक दृष्टि की आवश्यकता होती है, जिसे केवल उनकी कृपा से प्राप्त किया जा सकता है।

    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 5
    🕉 श्रीभगवान बोले:
    "हे पार्थ! मेरे सैकड़ों और हजारों दिव्य स्वरूपों को देखो, जो विभिन्न प्रकार के हैं, अनेक रंगों और आकारों से युक्त हैं।"

    🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान के अनगिनत दिव्य स्वरूप हैं, और वे हर रूप में विद्यमान हैं।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 4
    Apr 20 2025
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 4 संस्कृत श्लोक:"मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्॥" अर्जुन बोले:"हे प्रभु! यदि आप यह मानते हैं कि मैं आपके उस दिव्य स्वरूप को देखने में सक्षम हूँ, तो हे योगेश्वर! कृपा करके मुझे अपना अविनाशी स्वरूप दिखाइए।" 👉 "मन्यसे यदि तच्छक्यं" – अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से विनम्रता पूर्वक निवेदन कर रहे हैं कि यदि वे योग्य हैं, तो ही भगवान उन्हें अपना विराट रूप दिखाएँ।👉 "मया द्रष्टुमिति प्रभो" – अर्जुन स्वयं को भगवान के विराट स्वरूप को देखने के योग्य मानने का अहंकार नहीं रखते, बल्कि वे श्रीकृष्ण की अनुमति और कृपा पर निर्भर हैं।👉 "योगेश्वर" – श्रीकृष्ण को योग के स्वामी (योगेश्वर) कहा गया है, क्योंकि वे समस्त दिव्य शक्तियों और रहस्यों के ज्ञाता और नियंता हैं।👉 "दर्शयात्मानमव्ययम्" – अर्जुन भगवान से उनके अविनाशी (अव्यय) और अनंत स्वरूप के दर्शन की प्रार्थना कर रहे हैं। ✅ अर्जुन अपनी विनम्रता और श्रद्धा प्रकट कर रहे हैं, यह दर्शाते हुए कि भगवान की कृपा के बिना कोई भी उनके विराट स्वरूप को नहीं देख सकता।✅ यह श्लोक यह सिखाता है कि भगवान का दिव्य दर्शन किसी की योग्यता पर निर्भर नहीं करता, बल्कि केवल उनकी कृपा से संभव है।✅ विनम्रता और भक्ति भगवान के दर्शन प्राप्त करने की प्रमुख शर्तें हैं। 💡 यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान का अनुभव केवल बुद्धि से नहीं, बल्कि उनकी कृपा और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 4🕉 अर्जुन बोले:"हे प्रभु! यदि आप यह मानते हैं कि मैं आपके उस दिव्य स्वरूप को देखने में सक्षम हूँ, तो हे योगेश्वर! कृपा करके मुझे अपना अविनाशी स्वरूप दिखाइए।" 🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान के विराट स्वरूप को देखने के लिए अहंकार नहीं, बल्कि भक्ति और विनम्रता की आवश्यकता होती है। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #Vedanta #Spirituality #गीता_उपदेश #महाभारत #GeetaShlok #KrishnaBhakti #Bhakti #Yoga #ज्ञानयोग #Moksha 📜 हिंदी अनुवाद:📝 व्याख्या (Explanation):🔎 निष्कर्ष (Conclusion):📌 Description (विवरण) for ...
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 3
    Apr 19 2025
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 3 संस्कृत श्लोक:"एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर।द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम॥" अर्जुन बोले:"हे परमेश्वर! आपने जैसे अपने स्वरूप का वर्णन किया है, वह सत्य है। हे पुरुषोत्तम! अब मैं आपके उस दिव्य ऐश्वर्ययुक्त रूप को प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ।" 👉 "एवमेतत् यथात्थ" – अर्जुन स्वीकार करते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बारे में जो कुछ भी बताया है, वह पूर्णतः सत्य है।👉 "त्वमात्मानं परमेश्वर" – अर्जुन यह मान चुके हैं कि श्रीकृष्ण ही परमेश्वर हैं, जो संपूर्ण सृष्टि के कर्ता और नियंता हैं।👉 "द्रष्टुमिच्छामि" – अब अर्जुन श्रीकृष्ण के विराट रूप को प्रत्यक्ष देखना चाहते हैं, जिससे उन्हें अपने ज्ञान को प्रत्यक्ष अनुभव में बदलने का अवसर मिले।👉 "रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम" – अर्जुन भगवान से उनके ऐश्वर्ययुक्त (दिव्य) स्वरूप के दर्शन की प्रार्थना कर रहे हैं। ✅ अर्जुन अब श्रीकृष्ण के परमेश्वरत्व को स्वीकार कर चुके हैं।✅ वे केवल ज्ञान से संतुष्ट नहीं हैं, बल्कि अब वे भगवान के विराट स्वरूप को प्रत्यक्ष देखना चाहते हैं।✅ यह श्लोक यह दर्शाता है कि श्रद्धा और ज्ञान के बाद, भक्ति हमें भगवान के दिव्य स्वरूप के साक्षात्कार की ओर ले जाती है। 💡 यह श्लोक हमें सिखाता है कि केवल शास्त्रों को पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि भगवान के वास्तविक स्वरूप को अनुभव करने की प्रबल इच्छा भी होनी चाहिए। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 3🕉 अर्जुन बोले:"हे परमेश्वर! आपने जैसे अपने स्वरूप का वर्णन किया है, वह सत्य है। हे पुरुषोत्तम! अब मैं आपके उस दिव्य ऐश्वर्ययुक्त रूप को प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ।" 🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि सच्चे भक्त को केवल ज्ञान से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे भगवान के वास्तविक स्वरूप का अनुभव करने की इच्छा भी रखनी चाहिए। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #Vedanta #Spirituality #गीता_उपदेश #महाभारत #GeetaShlok #KrishnaBhakti #Bhakti #Yoga #ज्ञानयोग #Moksha
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 2
    Apr 19 2025
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 2 संस्कृत श्लोक:"भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।त्वत्त: कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्॥" अर्जुन बोले:"हे कमलपत्र के समान नेत्रों वाले प्रभु! मैंने आपके मुख से विस्तारपूर्वक समस्त भूतों के उत्पत्ति और विनाश को सुना है, तथा आपके अविनाशी महात्म्य (महिमा) को भी जाना है।" 👉 "भवाप्ययौ" – अर्जुन कह रहे हैं कि उन्होंने संसार के सभी प्राणियों की उत्पत्ति (भव) और विनाश (अव्यय) के विषय में विस्तार से जाना है।👉 "श्रुतौ विस्तरश:" – यह ज्ञान उन्हें भगवान श्रीकृष्ण के मुख से सुनने को मिला, जिससे उनका ज्ञान और स्पष्टता बढ़ी।👉 "कमलपत्राक्ष" – अर्जुन भगवान को कमल के समान सुंदर नेत्रों वाले कहकर संबोधित कर रहे हैं, जिससे उनकी दिव्यता प्रकट होती है।👉 "माहात्म्यमपि चाव्ययम्" – अर्जुन ने भगवान की अविनाशी महिमा को भी स्वीकार कर लिया है, यानी वे यह समझ चुके हैं कि श्रीकृष्ण ही सृष्टि के परम नियंता हैं। ✅ भगवान श्रीकृष्ण सृष्टि की उत्पत्ति और विनाश के कारण हैं।✅ अर्जुन अब यह समझ चुके हैं कि श्रीकृष्ण की महिमा अविनाशी (अव्यय) है।✅ भगवान का ज्ञान अपरिमित और दिव्य है, जिसे केवल उनकी कृपा से ही समझा जा सकता है। 💡 यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान की दिव्य महिमा को जानने के लिए हमें उनके ज्ञान को श्रद्धा और भक्ति से स्वीकार करना चाहिए। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 2🕉 अर्जुन बोले:"हे प्रभु! मैंने आपके मुख से सृष्टि की उत्पत्ति और विनाश का रहस्य सुना है तथा आपकी अविनाशी महिमा को भी जाना है।" 🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान की महिमा अपरिवर्तनीय और अनंत है। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #Vedanta #Spirituality #गीता_उपदेश #महाभारत #GeetaShlok #KrishnaBhakti #Bhakti #Yoga #ज्ञानयोग #Moksha 📜 हिंदी अनुवाद:📝 व्याख्या (Explanation):🔎 निष्कर्ष (Conclusion):📌 Description (विवरण) for YouTube or Social Media:📌 Relevant Hashtags (हैशटैग्स):
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 1
    Jan 30 2025

    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 1
    🕉 अर्जुन बोले:
    "हे भगवान! आपकी कृपा से आपने जो मुझे परम गोपनीय आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया है, उसके द्वारा मेरा यह मोह नष्ट हो गया है।"

    इस श्लोक में अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण का आभार व्यक्त कर रहे हैं, क्योंकि उनके द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान ने अर्जुन के मन से मोह और भ्रम को समाप्त कर दिया। यह ज्ञान अत्यंत गुप्त और दुर्लभ है, जिसे केवल सच्चे भक्त और योगी ही प्राप्त कर सकते हैं।

    🔹 मुख्य बिंदु:
    ✔️ भगवान की कृपा से ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।
    ✔️ आध्यात्मिक ज्ञान सभी मोह और संशय को दूर कर देता है।
    ✔️ जब व्यक्ति सत्य को पहचान लेता है, तो वह अपने कर्तव्य को सही रूप से समझ सकता है।

    🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि जब हम सच्चे ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं, तब हमारे सभी संदेह और मोह समाप्त हो जाते हैं।

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