• Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11

  • By: Yatrigan kripya dhyan de!
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Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11

By: Yatrigan kripya dhyan de!
  • Summary

  • In this chapter, he requests the Lord to show him His viśhwarūp, or the infinite cosmic form. Shree Krishna grants Arjun divine vision to see His infinite-form that comprises all the universes. Arjun sees the entire creation in the body of the God of gods with unlimited arms, faces, and stomachs. It has no beginning or end and extends immeasurably in all directions. His radiance is similar to a thousand suns blazing together in the sky. The sight dazzles Arjun, and his hair stands on end. He witnesses the three worlds trembling with fear of God’s laws and the celestial gods taking His shelter.
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 5
    Apr 20 2025

    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 5संस्कृत श्लोक:

    "श्रीभगवानुवाच |
    पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश: |
    नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ||"

    श्रीभगवान बोले:
    "हे पार्थ! मेरे सैकड़ों और हजारों दिव्य स्वरूपों को देखो, जो विभिन्न प्रकार के हैं, अनेक रंगों और आकारों से युक्त हैं।"

    👉 "पश्य मे पार्थ रूपाणि" – श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने असंख्य दिव्य रूपों के दर्शन कराने जा रहे हैं।
    👉 "शतशोऽथ सहस्रशः" – भगवान के अनगिनत स्वरूप हैं, जिनकी गिनती सैकड़ों और हजारों में भी नहीं हो सकती।
    👉 "नानाविधानि दिव्यानि" – ये सभी स्वरूप दिव्य (अलौकिक) हैं, जिनका सामान्य मानव अनुभव नहीं कर सकता।
    👉 "नानावर्णाकृतीनि च" – भगवान के ये रूप विभिन्न रंगों, आकारों और स्वरूपों में हैं, जो उनकी अनंतता और व्यापकता को दर्शाते हैं।

    भगवान के स्वरूप अनंत हैं, वे केवल एक रूप तक सीमित नहीं हैं।
    संसार में सभी विविधताएँ भगवान के विभिन्न स्वरूपों का ही प्रतिबिंब हैं।
    यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि ईश्वर की महिमा असीम है, और वे अनेक रूपों में उपस्थित रहते हैं।

    💡 भगवान के विराट रूप को देखने के लिए हमें आध्यात्मिक दृष्टि की आवश्यकता होती है, जिसे केवल उनकी कृपा से प्राप्त किया जा सकता है।

    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 5
    🕉 श्रीभगवान बोले:
    "हे पार्थ! मेरे सैकड़ों और हजारों दिव्य स्वरूपों को देखो, जो विभिन्न प्रकार के हैं, अनेक रंगों और आकारों से युक्त हैं।"

    🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान के अनगिनत दिव्य स्वरूप हैं, और वे हर रूप में विद्यमान हैं।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 4
    Apr 20 2025
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 4 संस्कृत श्लोक:"मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्॥" अर्जुन बोले:"हे प्रभु! यदि आप यह मानते हैं कि मैं आपके उस दिव्य स्वरूप को देखने में सक्षम हूँ, तो हे योगेश्वर! कृपा करके मुझे अपना अविनाशी स्वरूप दिखाइए।" 👉 "मन्यसे यदि तच्छक्यं" – अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से विनम्रता पूर्वक निवेदन कर रहे हैं कि यदि वे योग्य हैं, तो ही भगवान उन्हें अपना विराट रूप दिखाएँ।👉 "मया द्रष्टुमिति प्रभो" – अर्जुन स्वयं को भगवान के विराट स्वरूप को देखने के योग्य मानने का अहंकार नहीं रखते, बल्कि वे श्रीकृष्ण की अनुमति और कृपा पर निर्भर हैं।👉 "योगेश्वर" – श्रीकृष्ण को योग के स्वामी (योगेश्वर) कहा गया है, क्योंकि वे समस्त दिव्य शक्तियों और रहस्यों के ज्ञाता और नियंता हैं।👉 "दर्शयात्मानमव्ययम्" – अर्जुन भगवान से उनके अविनाशी (अव्यय) और अनंत स्वरूप के दर्शन की प्रार्थना कर रहे हैं। ✅ अर्जुन अपनी विनम्रता और श्रद्धा प्रकट कर रहे हैं, यह दर्शाते हुए कि भगवान की कृपा के बिना कोई भी उनके विराट स्वरूप को नहीं देख सकता।✅ यह श्लोक यह सिखाता है कि भगवान का दिव्य दर्शन किसी की योग्यता पर निर्भर नहीं करता, बल्कि केवल उनकी कृपा से संभव है।✅ विनम्रता और भक्ति भगवान के दर्शन प्राप्त करने की प्रमुख शर्तें हैं। 💡 यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान का अनुभव केवल बुद्धि से नहीं, बल्कि उनकी कृपा और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 4🕉 अर्जुन बोले:"हे प्रभु! यदि आप यह मानते हैं कि मैं आपके उस दिव्य स्वरूप को देखने में सक्षम हूँ, तो हे योगेश्वर! कृपा करके मुझे अपना अविनाशी स्वरूप दिखाइए।" 🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान के विराट स्वरूप को देखने के लिए अहंकार नहीं, बल्कि भक्ति और विनम्रता की आवश्यकता होती है। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #Vedanta #Spirituality #गीता_उपदेश #महाभारत #GeetaShlok #KrishnaBhakti #Bhakti #Yoga #ज्ञानयोग #Moksha 📜 हिंदी अनुवाद:📝 व्याख्या (Explanation):🔎 निष्कर्ष (Conclusion):📌 Description (विवरण) for ...
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 3
    Apr 19 2025
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 3 संस्कृत श्लोक:"एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर।द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम॥" अर्जुन बोले:"हे परमेश्वर! आपने जैसे अपने स्वरूप का वर्णन किया है, वह सत्य है। हे पुरुषोत्तम! अब मैं आपके उस दिव्य ऐश्वर्ययुक्त रूप को प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ।" 👉 "एवमेतत् यथात्थ" – अर्जुन स्वीकार करते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बारे में जो कुछ भी बताया है, वह पूर्णतः सत्य है।👉 "त्वमात्मानं परमेश्वर" – अर्जुन यह मान चुके हैं कि श्रीकृष्ण ही परमेश्वर हैं, जो संपूर्ण सृष्टि के कर्ता और नियंता हैं।👉 "द्रष्टुमिच्छामि" – अब अर्जुन श्रीकृष्ण के विराट रूप को प्रत्यक्ष देखना चाहते हैं, जिससे उन्हें अपने ज्ञान को प्रत्यक्ष अनुभव में बदलने का अवसर मिले।👉 "रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम" – अर्जुन भगवान से उनके ऐश्वर्ययुक्त (दिव्य) स्वरूप के दर्शन की प्रार्थना कर रहे हैं। ✅ अर्जुन अब श्रीकृष्ण के परमेश्वरत्व को स्वीकार कर चुके हैं।✅ वे केवल ज्ञान से संतुष्ट नहीं हैं, बल्कि अब वे भगवान के विराट स्वरूप को प्रत्यक्ष देखना चाहते हैं।✅ यह श्लोक यह दर्शाता है कि श्रद्धा और ज्ञान के बाद, भक्ति हमें भगवान के दिव्य स्वरूप के साक्षात्कार की ओर ले जाती है। 💡 यह श्लोक हमें सिखाता है कि केवल शास्त्रों को पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि भगवान के वास्तविक स्वरूप को अनुभव करने की प्रबल इच्छा भी होनी चाहिए। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूप दर्शन योग) - श्लोक 3🕉 अर्जुन बोले:"हे परमेश्वर! आपने जैसे अपने स्वरूप का वर्णन किया है, वह सत्य है। हे पुरुषोत्तम! अब मैं आपके उस दिव्य ऐश्वर्ययुक्त रूप को प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ।" 🙏 गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि सच्चे भक्त को केवल ज्ञान से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे भगवान के वास्तविक स्वरूप का अनुभव करने की इच्छा भी रखनी चाहिए। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #Vedanta #Spirituality #गीता_उपदेश #महाभारत #GeetaShlok #KrishnaBhakti #Bhakti #Yoga #ज्ञानयोग #Moksha
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